अपने ही बुने जाल मे फंसता धनाढ्य समाज
व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि चार भागों मे यह ब्रह्मांड है । व्यक्तियों के समूह को समाज कहा गया । प्रत्येक व्यक्ति अपने बारे मे, अपने परिवार के बारे मे सोचे यह उचित ही है । चुंकी अपने बारे मे नही सोचने से अपना जीवन नही चल सकता किंतु हम कभी भी समाज के बगैर अपने आप को आगे नही बढा सकते, समाज के बगैर न ही हमारा विकास हो सकता है । आज देश मे समाज जन मे आर्थिक विषमता बहुत तेजी से बढ रही है । एक वर्ग आर्थिक तंगी के कारण मानव जीवन के लिए मूलभूत आवश्यक रोटी, कपडा और मकान के लिए भी परावलम्बी हो चुका दिखता है । दूसरी और एक वर्ग ऐसा भी है जिनके आय के साधन प्रचूर हैं । दूसरे ऐसे धनाढ्य वर्ग के आय के स्रोत एवं उनके द्वारा उसके व्यय के तरीके पर यहाँ मै अपने दृष्टिकोण से विचार करुंगा ।
(क) धनाढ्य वर्ग के आय के स्रोत ;-
1. प्रकृति के शोषण के साथ उद्योग
2. नैतिकता की गिरावट के साथ राजनीति
3. नकारात्मक प्रस्तुतिकरण एवं व्यवसायिकता के साथ ( पत्रकारिता ) समाचार सम्प्रेषण
4. संस्कृति पर आक्रमण के साथ बुद्धिजीवी
5. कामुकता की और बढता फिल्म जगत
6. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा मे लिप्त खिलाडी
7. शिक्षा का व्यवसायीकरण
8. स्वास्थ्य रक्षण के नाम पर लूट
9. एकाधिकार की तरफ बढते कारोबारी
10. धार्मिक आस्था केंद्रों पर राजनीति
11. रक्षक ही भक्षक ( सुरक्षा, चिकित्सक, न्यायालय )
12. उपरोक्त को प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष मदद पहुंचाकर
- उद्योग ;- मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करने मे उद्योग की बहुत बडी भूमिका है किंतु आज उद्योगपति के मन की संवेदना घट रही है । उद्योग में काम करने वाले मजदूर की तुलना मशीनों से की जा रही है । तकनीकी विकास के बलबूते मनुष्य और प्रकृति दोनों का शोषण उद्योगपति द्वारा चल रहा है ।
- राजनीति ;- समाज हित में सोचने वाले न्यूनतम और समाज की कमजोरी के आधार पर लूटने वाले अधिकतम राजनेता खडे हो रहे हैं । अधिकतम नेता की यही चाहत है कि समाज द्वारा अर्जित धन बांटने के लिए जब वे खडे हों तो भीखारी जैसे जनता उनके सामने खडे होकर सभा की भीड बढाते रहें । चाहे वे नेता भ्रष्टाचार मे आकंठ डूबे रहें । दूसरी बात अपनी सुविधा बढाने मे जनता की गाढी कमाई से उनको कोई मोह नही ।
- समाचार सम्प्रेषण ( पत्रकारिता ) ;- समाचार जगत मे बडे पुंजीपति का प्रवेश होने और विज्ञापन प्राप्त करने के लिये कारोबारी, उद्योगपति, कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, फिल्म जगत, शिक्षा जगत, चिकित्सा जगत की खामियों की जानकारी रखने मे ध्यान, जिसके बलबूते विज्ञापन की राशि वसूली जा सके । सांस्कृतिक आक्रमण करने से विदेशी आशीर्वाद मिलने की सम्भावना ।
- बुद्धिजीवी ;- स्वाध्याय न प्रमद; की सोच रखने वाले भारत के बुद्धिजीवी आज विदेशी इशारे पर इस देश की सांस्कृतिक धरोहर ( सत्य, अहिंसा, त्याग, दान, सेवा, परोपकार आदि ) को छोडकर पाश्चात्यकरण में अपनी कलम चला रहे हैं और उसके माध्यम से धन अर्जित कर रहें हैं ।
- फिल्म जगत :- आज कम से कम कपडे में नायिका को प्रस्तुत करना यह प्रचलन बढ रहा है नशा करते हुए दृश्य बनाना यह सब निर्माताओं द्वारा इसलिये चल रहा है क्योंकि जनता इस बात पर अधिक खर्च करने मे रुचि लेती है ।खिलाडी :- सरकारी बजट का ज्यादा हिस्सा जिस खेल मे व्यय होता है उसी खेल के प्रति जनता का आकर्षण बढता है आज विदेशों मे विकसित खेल को ही अपने देश मे प्रचलित करने का विशेष आग्रह राजनितिकों द्वारा रखा जा रहा है जिसमें प्रतियोगिता पुर्ण दृष्टिकोण होने के कारण प्रत्येक खिलाडी का महत्वाकांक्षी होना स्वाभाविक है ।शिक्षा :- आज व्यवसायिक शिक्षा के प्रति समाज का रुझान बढा है जिसको देखते हुए शिक्षाविद अब दुकानदारी मे उतर गए हैं । तकनीकि शिक्षा में भारी भरकम खर्च को तैयार अभिभावकों की जेब खाली करवाने में तकनीकि संस्थान होड मचाये हुए हैं ।स्वास्थ्य :- जन समुदाय ने आज अपनी दिनचर्या को इस प्रकार बिगाड लिया है कि उनकी बिमारी दिनोंदिन बढ रही है । सभी चाहते हैं कि जल्द से जल्द स्वास्थ्य को तात्कालिक लाभ पहुंचाकर अपनी दिनचर्या मे वापस लौट सकें । इस कारण वे चिकित्सा से अधिकतम शोषित हो रहे हैं । जन-जीवन मे लोग शारीरिकसे दूर हो रहे हैं जो चिकित्सकों के लिए एक मौका हो गया है वे लाभ ले रहें हैं ।कारोबारी :- प्रत्येक व्यवसायी चाहते हैं कि बाज़ार में उत्पादन पर उनका एकाधिकार रहे आज नेटवर्क व्यवसाय और मॉल मे सदस्य ग्राहक बनाकर लुभावनी व्यवस्था बनाई जा रही है अन्य क्षेत्रों में भी इसी प्रकार एकाधिकार का प्रयास चल रहा है जिसके कारण पुंजी का केंद्रीकरण हो रहा है ।धार्मिक आस्था केंद्र :- पुरी दुनिया में फैले भारतीय, विभिन्न मठ-मंदिरों में अपनी मन्नत पुरी होने पर चढावा चढाते हैं वैसे अधिकतम केंद्रों पर चुंकी सरकारी हस्तक्षेप हो रहा है जिसके चलते वहां राजनीति को बढावा मिला है । पुर्व में विकसित जन्माधारित पुजकों की व्यवस्था में भी आपसी संघर्ष होने के चलते वर्तमान व्यवस्था विकसित हुई है ।रक्षक ही भक्षक :- स्वास्थ्य रक्षा में लगे चिकित्सक, देश के आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मी एवं न्यायालय में बैठे न्यायाधीश भी इस दायरे में आ रहे हैं । नैतिकता में गिरावट ही इस परिस्थिति का मूल कारण है ।उपरोक्त को प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष मदद पहुंचाकर भी लोग धन अर्जित कर रहें हैं ।(ख) धनाढ्य वर्ग के व्यय के तरीके:-1. नई पीढी के व्यवसायिक शिक्षा पर व्यय2. आलीशान मकान पर व्यय3. आडम्बरयुक्त विवाह पर व्यय4. पर्यटन पर व्यय5. स्वास्थ्य रक्षण पर व्यय6. दिखावा – वस्त्र, आभूषण, वाहन, साज सज्जा, इलेक्ट्रीक, इलेक्ट्रोनिक7. धार्मिक आस्था केंद्रो पर व्यय8. सेवा प्रकल्प पर व्यय9. नशा में व्यय10. व्यभिचार में व्यय11. भोजन पर व्यय12. माफिया/गुंडा तत्व के पोषण पर व्यय13. आपसी संघर्ष के निपटारे पर व्यय14. सरकारी कर15. राजनेता पर व्यय16. मनोरंजन पर व्ययवैसे तो मनुष्य जीवन के लिए अति आवश्यक रोटी, कपडा, मकान, संस्कारयुक्त शिक्षा, स्वास्थ्य है । लेकिन धनाढ्य वर्ग ने अपनी अतिरिक्त आय के व्यय हेतु विभिन्न रास्ते बना लिए हैं ।· नई पीढी के व्यवसायिक शिक्षा पर व्यय :- आज प्रत्येक अभिभावक अपनी संतान को व्यवसायिक शिक्षा दिलवाने पर अपनी आय का एक बडा हिस्सा खर्च कर रहे हैं । अभिभावक की चाहत है कि मेरी संतान आय के किसी भी प्रकार के स्रोत खडे करे ।· आलीशान मकान पर व्यय :- मकान का आकार कितना बडा है यह आज समाज में प्रतिष्ठा का विषय बन गया है चाहे उस मकान की परिजनों को रहने के लिए आवश्यकता हो या नही । चाहे उसके रख-रखाव के लिए अधिक खर्च करना पडे ।· आडम्बरयुक्त विवाह पर व्यय :- विवाह के प्रीति भोज पर कितने लोगोंको अतिथि नाते बुलाया और कितना खर्च किया यही प्रतिष्ठा का विषय हो गया है । विवाह पर होने वाली फूलों की सज्जा, विद्युत उपकरण की सजावट, रंगमंचीय नृत्य, गाजा-बाजा, दहेज इन बातों पर होने वाले व्ययके कारण तो कभी-कभी धनी व्यक्ति भी चिंता की मुद्रा में आ जाता है किंतु लोक-लज्जा के चलते यह सब आवश्यक समझता है ।· पर्यटन पर व्यय :- आज देश के यातायात साधनों में लगातार वृद्धि हो रही है । यात्रा हेतु विमानों की, रेलगाडियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है । घुमने से बुद्धि का विकास होता है लेकिन इसका कोई अंत भी नही है । पर्यटन में दिखावे पर व्यय अधिक हो रहा है ।· स्वास्थ्य रक्षण पर व्यय :- चिकित्सकों में प्रामाणिकता की कमी के कारण अधिक खर्च करके धनी व्यक्ति अपने आपको स्वास्थ्य रक्षण में संतुष्ट पाता है ।· दिखावा :- वस्त्र, आभूषण, साज-सज्जा, घरलु उपकरण, बिजली उपकरण, इलेक्ट्रोनिक उपकरण, एवं वाहन इन सभी में अपने आर्थिक स्तर से व्यक्ति दिखावे में खर्च कर रहा है जो अनेक प्रकार की नई परेशानी भी खडी कर रहें हैं।· धार्मिक आस्था केंद्रों पर व्यय :- चढावा, मंदिर निर्माण, धर्मशाला निर्माण, आदि केंद्रों के विस्तार में समाज खर्च कर रहा है । मेरा ख्याल है मंदिरों की रचना उतनी ही करनी चाहिए जितने की स्वच्क्ष्ता एवं पूजन व्यव्स्था जीवन भर निभाई जा सके न कि किसी जमीन पर कब्जे के उद्देश्य से यह प्रक्रिया हो फिर भी कुछ निर्माण कार्य समाज हित में हो रहे हैं।· सेवा प्रकल्प पर व्यय :- कुछ धनी जन सेवा पर अपनी आय का कुछ हिस्सा व्यय कर रहे हैं यह अच्छी बात है । सेवा की आड में अपनी महत्वाकांक्षा को छुपाकर रखने वाले भी कुछ लोग हैं उनका दृष्टिकोण बदले यह आज के समय की मांग है ।· नशा :- आज शिक्षित समाज भी नशा में आगे है इसके कारण स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड रहा है । फिर भी नशा आज आम जनता में फैला है उसमे धनाढ्य भी पीछे नही हैं ।· व्यभिचार पर व्यय :- कामुकता एवं अन्य बातोंपर धनाढ्य वर्ग व्यय कर रहा है समाज को आचरण का पाठ पढाने वाले भी इसके नजदीक जा रहे हैं । जिससे लोग भ्रमित हो रहे हैं ।· भोजन पर व्यय :- सामान्य भोजन तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है किंतु स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले व्यंजन आज प्रचलित हो गए हैं जिसपर समाज का दोतरफा व्यय बढा है ।· माफिया / गुंडा तत्व के पोषण पर व्यय :- कुछ धनपतियों के द्वारा अपने स्वार्थ के लिए पोषित माफिया / गुंडा तत्व बाद में अपना नेटवर्क बनाकर समाज के लिए परेशानी पैदा कर रहें हैं । इस प्रकार की गतिविधि में आज भी समाज का काफी धन व्यय हो रहा है ।· आपसी संघर्ष के निपटारे पर व्यय :- न्याय व्यवस्था की वर्तमान प्रणाली में धनी व्यक्ति अपनी बात मनवाने में धन का दुरुपयोग कर न्याय पर प्रभाव डालता है जिससे गरीब की समस्या बढ रही है ।· सरकारी कर :- धनाढ्य वर्ग अपनी आय का एक हिस्सा सरकार को कर के रूप में अदा करते हैं बाद में उनकी अपेक्षा रहती है कि इस धन के व्यय में भी उनकी इच्छा जानी जाए ।· राजनेता पर व्यय :- अपनी पहचान बढाने के लिए धनी लोगों के एक वर्ग द्वारा राजनेता को भी खुश करने का प्रयास चलता है जिससे सत्ता में आने पर उनसे अपने स्वार्थ अनुसार नीति निर्धारण करवाई जा सके ।· मनोरंजन पर व्यय :- मनोरंजन पर व्यय करने से अपना मन प्रसन्न रहता है परंतु मनोरंजन को फूहडता से जोडना यह धनी वर्ग द्वारा तेजी से हो रहा है ।समाज में अमीर-गरीब का होना स्वाभाविक है सभी उंगलियां कभी समान नही हो सकती किंतु यह अनुपात बढ रहा है जो चिंता का कारण है । काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर मनुष्य के छ: शत्रु हैं इनके बढने से सामाजिक असंतुलन बढेगा और इनके न रहने से समाज नहीं चल सकता । उपरोक्त धनी वर्ग के आय-व्यय के स्रोत से ध्यान में आता है कि उनके स्वास्थ्य में गिरावट, उनपर असामाजिक तत्व का दबाव, उनपर राजनेता का दबाव लगातार बढ रहा है । उनके घर का कलह भी बढ रहा है चुंकि संतोष की भावना का लोप होते हुए भोग वादी जीवन की कामना बढ रही है । इन सब बातों को लिखने का मेरा मकसद यह नही कि समस्या ही बताई जाए मै चाहता हुं समाधान की दिशा में चिंतन एवं व्यवहार में भी सकारात्मक योगदान करें ।दूसरे के दु:ख को देखकर जो खुश हो - नर राक्षसदूसरे के दु:ख को देखकर जो न दु:खी हो, न खुश हो - नर पशुदूसरे के दु:ख को देखकर जो दु:खी तो हो लेकिन करे कुछ नहीं - नरऔर दूसरे के दु:ख को देखकर सेवा के लिए खडे हो जाए - नरोत्तमइस प्रकार चार प्रकार के लोग दुनिया में हैं प्रत्येक व्यक्ति उत्तरोत्तर नरोत्तम बनने की और अग्रसर हो यह आज के समय की मांग है । जिससे विश्व बंधुत्व स्थापित हो सके ।लक्ष्मण भावसिंहकाधनबादफाल्गुन शुक्ल पंचमीयुगाब्द- 5109