Wednesday, July 30, 2014

इस्लाम और चर्च की गतिविधि संचालकों से भी हम सीख सखते हैं संगठन सूत्र

इस्लाम और चर्च की गतिविधि संचालकों से भी हम सीख सखते हैं संगठन सूत्र 

इस्लाम के प्रवर्तक और चर्च की गतिविधि संचालित करने वाले संगठन 4 काम को समान रूप से संगठन हेतु अपनाते हुए दिखाई देते हैं ;- 

1- संगठन के लिये नियमित मिलना (साप्ताहिक)
2- मिलने के बाद सामुहिक कार्यक्रम ( नमाज/प्रार्थना )
3- सामुहिक मिलन की गतिविधि का वैश्विक स्तर पर नेटवर्क, तथा
4- मिलन का कार्यक्रम नागरिकों के अपने मुहल्ले मे ही । 

जबकी हिंदू समाज के संगठन का इस प्रकार से कोई  सांगठनिक व्यवस्था वर्तमान मे दिखाई नही देती है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संघ की शाखा पर संगठन की ये चारों व्यस्थायें दी हैं । परंतु ये विडम्बना हि है की हिंदू समाज आज भी नियमित मिलने-जुलने की गतिविधि को बढा नही पा रहा है और अगर पूर्व  से हिंदुओं की मिलने- जुलने की गतिविधि पर विचार किया जाये तो ध्यान मे आता है कि बडे-बडे सम्मेलनों मे, मेले मे या भक्ति के आयोजनों मे मिलने से उपरोक्त चारो कार्यों की पुर्ति नही हो पाती  । संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी कहते थे प्रश्न तीन है और उत्तर एक-- रोटी जली क्यों, पान सडा क्यों और घोडा अडा क्यों ? इन तीनों प्रश्नों का एक ही उत्तर है 'फेरा नही गया' उसी प्रकार अपने हिंदू समाज को भी फेरा नही गया जिसके चलते हिंदू जनमानस आपसी मतभेदों मे उलझ गया । 

यह सर्वविदित है की सामाजिक प्रीति के 6 लक्षण हैं-- आना, जाना, खाना, खिलाना, दुसरे के रहस्य की बातों को सुनना और अपने रहस्य की बातों को दुसरों को बताना । अपने देश मे चलने वाले अधिकतम जातिगत संगठनों ने आने, जाने, खाने, खिलाने पर प्रतिबंध लगाकर ही सामाजिक खाई को बढावा दिया है और व्यक्ति अपने, अपने परिवार, अपने रिश्ते-नाते, अपनी जाति तक की सोच मे अटक गया और अपने इस वृहद हिंदू समाज के प्रीति को भूलने लगा जिसका दुस्परिणाम आज की बिखराव की स्थिति के रूप मे सामने आया है । 
संघ ने जो संगठन का सूत्र हिंदू समाज के सामने रखा है उसे जल्द से जल्द अपनाकर हि वैश्विक परिस्थितियों से इस देश को बचाया जा सकता है और भारत फिर से विश्व गुरू के शिखर पर पहुंच सकता है । 

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