Wednesday, December 17, 2014

मिडिया का वर्तमान स्वरूप तथा राष्ट्रीय भावना के निर्माण में उसकी भूमिका

 भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अनुसार सूचना विभाग के अंतर्गत गवेषणा, संदर्भ और प्रशिक्षण प्रभाग ( Research, Reference & Training Division ), प्रकाशन विभाग ( Publication Division ), गीत व नाटक प्रभाग ( Song & Drama Division ), भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय ( Registrar Of Newspaper For India ), पत्र सूचना कार्यालय ( Press Information Bureau ), भारतीय प्रेस परिषद ( Press Council Of India ), भारतीय जन संचार संस्थान ( Indian Institute Of Mass Communication ), फोटो प्रभाग ( Photo Division ), विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय ( Directorate of Advertising & Visual Publicity ), क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय ( Directorate of Field Publicity ), भारतीय सूचना सेवा ( Indian Information Service ), तथा न्यू मीडिया विंग ( New Media Wing ) काम कर रहे हैं । साथ ही प्रसारण विभाग के अंतर्गत काम करने वाली संस्थायें - प्रसारण इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड ( Broadcasting Engineering Consultants India Limited ), इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर ( Electronic Media Monitoring Centre ), प्रसार भारती ( Prasar Bharti ),  इसके अलावा फिल्म जगत के--- फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण ( Film Certification Appellate Tribunal ), भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान ( Film and Television Institute of India ), सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ( Satyajit Ray Film and Television Institute ), चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी, भारत ( Children's Film Society, India ), फिल्म प्रभाग ( Films Division ), फिल्म समारोह निदेशालय ( Directorate of Film Festivals ),  राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय ( National Film Archives of India ), केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ( Central Board of Film Certification ), भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव ( International Film Festival of India ), राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ( National Film Development Corporation ) संस्थान भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के ही अंतर्गत है । 
भारत सरकार द्वारा उपरोक्त सभी विभागों की योजना निश्चित रूप से मिडिया के ही हिस्से हैं या उसकी व्यवस्था को सुचारु ढंग से चलाने के लिए स्थापित किए गए हैं, जो की भारतवर्ष में एक विशाल स्वरूप धारण किये हुए हैं । इन सब के अलावा भी निजी तौर पर विभिन्न प्रकार के दबाव समूह या आपसी मेल-जोल वृद्धि हेतु भी बहुत से संगठनों का निर्माण हुआ है जो की मिडिया की विशालता को और बढाता है । 
भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2014 को लगभग एक लाख प्रकाशन पंजिकृत हैं जिनके द्वारा लगभग 45 करोड 6 लाख प्रति (वर्ष 2013-14 में) प्रत्येक पंजिकृत पत्र-पत्रिका की प्रकाशित हो रही है । इसके साथ ही लगभग 800 टीवी चेनेल, आकाशवाणी के अलावा लगभग 250-300 एफ.एम. रेडियो स्टेशन से विभिन्न भाषा में कार्यक्रमों का भारतवर्ष में प्रसारण किया जा रहा है । आंकडो में अगर प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक या इंटरनेट मिडिया की पुरी जानकारी देने का प्रयास करें तो शायद इसके लिए बहुत बडा स्थान लेख में देना होगा जो कि यहाँ बहुत आवश्यक नही समझता हूँ । 
मिडिया  जनता को समाज में हो रही घटना की जानकारी उपलब्ध कराता है साथ ही लोगों के मन में संवेदना या निष्ठुरता के भाव का निर्माण करता है । लोगों का मनोरंजन करता है तो ज्ञान का भंडार भी इसमें समाहित है ।मिडिया ही है जो नई पीढी में (छोटे-छोटे बच्चों में, युवाओं में) आज वृहद गति से विकास ला रहा है । मिडिया जन मानस में कुछ नकारात्मक बातों को भी परोस रहा है जो की जन भावनाओं को गलत दिशा में ले जा रहा है । यह बात सही है की इस प्रकार के जन संचार माध्यम को खडा करने में व्यापारिक दृष्टि से बहुत बडी पुंजी का निवेश करना होता है और यदि रियल स्टेट की तरह अगर हम इससे लाभ प्राप्त करने की अपेक्षा करें तो आज के दौर में वही होगा जो आज मिडिया के बंधु कर रहें हैं । जो मिडिया समाज को एक नई दिशा दे सकता है वही समाज को उजाड भी सकता है इस चिंतन को ध्यान में रखते हुए अगर मिडिया में कार्यरत बंधु सेवा भाव से काम करें तो देश को विश्व पटल पर ऊंचे स्थान पर ले जाने में यह अहम भूमिका निभा सकता है । छोटी-छोटी बातों की तरफ इंगित न करते हुए यह कहना उचित समझता हूँ कि मिडिया क्षेत्र में कार्यरत बंधु स्व-विवेक से जब सकारात्मक विचार करेंगे और केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से ही विचार नही करेंगे तब यह कहा जा सकेगा की इस देश में मिडिया में नए युग की शुरुआत हुई है । विदेश से जो पुंजी निवेश किए बंधु हैं वो भी विश्व बंधुत्व को अगर स्थापित करना चाहते हैं तो केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से संचार क्षेत्र में कार्य ना करें क्योकि कहा है 'एकं विसर्सो हन्ति शस्त्रे ने कश्च वद्यते स राष्ट्रं स प्रजं हन्ति राजानं मंत्र विप्लवः'
विष पीने से कोई एक व्यक्ति मारा जाता है, शस्त्र के प्रहार से भी कोई एक हि व्यक्ति की मृत्यु होती है किन्तु वैचारिक भ्रांति होने पर राजा एवं प्रजा के सहित सम्पुर्ण राष्ट्र का विनाश सम्भव है । 

Tuesday, October 28, 2014

संघ के स्वयंसेवक और प्रचारक बनने के दो महत्वपुर्ण क्षण

बात  1982 की है जब मै  कोयरी टोला प्राथमिक विद्यालय,  रामग़ढ कैंट में कक्षा  5 का छात्र था । रामगढ में ही गांधी स्मारक उच्च विद्यालय के प्रांगण मे प्रभात शाखा लगती थी जिसमें अच्छी संख्या में तरुण, बाल, शिशु स्वयंसेवकों की उपस्थिति रहती थी । शाखा पर मस्ती भरे खेल के आयोजन के साथ  व्यायाम, योगासन, सूर्यनमस्कार आदि शारीरिक एवं गीत, चर्चा, बोधकथा आदि बौद्धिक कार्यक्रम होते थे । पांच भाइयों में से मेरा क्रम अंत का यानि सबसे छोटा है। मेरे मंझले भैया भी नियमित रूप से शाखा जाया करते थे । उन्ही के साथ-साथ मै भी संघ शाखा पर जाने लगा । मेरे पिताजी भी नियमित रूप से मुझे जगा दिया करते थे जिससे मै सही समय पर शाखा पर पहुंच सकू । प्रारम्भ मे मेरे उपर कोई दायित्व नही था और शाखा पर किसी प्रवासी कार्यकर्ता ने मेरे से पुछा कि आपपर क्या दायित्व है तो मैंने कहा कि 'गण शिक्षक' तब मंडल मे बैठे सभी अन्य स्वयंसेवक हंसने लगे । इसपर मुझे बहुत ग्लानि हुई और मै दायित्व लेकर काम करने के लिये उत्सुक हो गया ।
थोडा छोड-छोडकर संघ में मेरी सक्रियता नियमित बनी रही । 1991 में प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग -हजारीबाग में, 1993 में द्वितीय वर्ष- धनबाद- टुंडी में, करके 1996 में तृतीय वर्ष करते समय पुजनीय रज्जु भैया के साथ ऐसे कार्यकर्ताओं की एक बैठक हुई जो आगे चलकर संघ के पुर्णकालिक प्रचारक के रूप में समय देंगे । मै भी उस बैठक में भाग लिया और वहाँ से लौटकर  दक्षिण बिहार प्रांत के प्रथम वर्ष के वर्ग में लोहरदगा के पास नवडीहा में  10 दिन शिक्षक की भूमिका में रहा । वर्ग के बाद प्रचारक विस्तारक बैठक में मुझे गढवा का तहसील विस्तारक बनाया गया । शायद  गढवा में संघ कार्य के लिए ईश्वर मेरे साथ नही थे । मै वहाँ केवल डेढ माह रहा और घर लौट आया । 1994 में वाणिज्य विषय से रामगढ महाविद्यालय से स्नातक करके मै व्यवसाय में भी लगा रहा था सो गढवा से लौटकर मै पुन: व्यवसाय में लग गया ।

1997 के फरवरी माह में संघ की रांची जिले की ( संघ की दृष्टि से रामगढ उस समय रांची जिले मे ही था ) बैठक मारवाडी धर्मशाला, रामगढ में आयोजित थी ज़िला कार्यवाह जगभरत जी ने मुझे बैठक की व्यवस्था का दायित्व सौंपा और बिना पुर्व सुचना के बैठक में भी बैठने का आग्रह किया । उसी बैठक में मुझे रामग़ढ के नगर कार्यवाह का दायित्व दिया गया।

1998 में धुर्वा, रांची में संघ शिक्षा वर्ग में मै शिक्षक के नाते गया था वहीं से मै पुन: प्रचारक के रूप में ( धनबाद के नगर विस्तारक के नाते ) संघ का पुर्णकालिक निकला । तब से अभी तक कुछ अवकाश लेकर अपनी लौकिक शिक्षा का विस्तार भी किया। लोक प्रशासन विषय से IGNOU  से स्नातकोत्तर और रांची विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान विषय से एम.फिल भी किया । गिरिडीह के ज़िला प्रचारक, 3 स्थान पर विभाग प्रचारक रहने के बाद झारखंड प्रांत प्रचार प्रमुख और वर्तमान में सह प्रांत प्रचार प्रमुख , दक्षिण बिहार के नाते अभी भी कार्य में लगा हुं। 

Monday, August 18, 2014

अपने ही बुने जाल मे फंसता धनाढ्य समाज

अपने ही बुने जाल मे फंसता धनाढ्य समाज 

व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि चार भागों मे यह ब्रह्मांड है । व्यक्तियों के समूह को समाज कहा गया । प्रत्येक व्यक्ति अपने बारे मे, अपने परिवार के बारे मे सोचे यह उचित ही है । चुंकी अपने बारे मे नही सोचने से अपना जीवन नही चल सकता किंतु हम कभी भी समाज के बगैर अपने आप को आगे नही बढा सकते, समाज के बगैर न  ही हमारा विकास हो सकता है । आज देश मे समाज जन मे आर्थिक विषमता बहुत तेजी से बढ रही है । एक वर्ग आर्थिक तंगी के कारण मानव जीवन के लिए मूलभूत आवश्यक रोटी, कपडा और मकान के लिए भी परावलम्बी हो चुका दिखता है । दूसरी और एक वर्ग ऐसा भी है जिनके आय के साधन प्रचूर हैं । दूसरे ऐसे धनाढ्य वर्ग के आय के स्रोत एवं उनके द्वारा उसके व्यय के तरीके पर यहाँ मै अपने दृष्टिकोण से विचार करुंगा । 

(क)  धनाढ्य वर्ग के आय के स्रोत ;- 
1. प्रकृति के शोषण के साथ उद्योग
2. नैतिकता की गिरावट के साथ राजनीति
3. नकारात्मक प्रस्तुतिकरण एवं व्यवसायिकता के साथ ( पत्रकारिता ) समाचार सम्प्रेषण
4. संस्कृति पर आक्रमण के साथ बुद्धिजीवी
5. कामुकता की और बढता फिल्म जगत
6. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा मे लिप्त खिलाडी
7. शिक्षा का व्यवसायीकरण
8. स्वास्थ्य रक्षण के नाम पर लूट
9. एकाधिकार की तरफ बढते कारोबारी
10. धार्मिक आस्था केंद्रों पर राजनीति
11. रक्षक ही भक्षक ( सुरक्षा, चिकित्सक, न्यायालय )
12. उपरोक्त को प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष मदद पहुंचाकर

  • उद्योग ;- मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करने मे उद्योग की बहुत बडी भूमिका है किंतु आज उद्योगपति के मन की संवेदना घट रही है । उद्योग में काम करने वाले मजदूर की तुलना मशीनों से की जा रही है । तकनीकी विकास के बलबूते मनुष्य और प्रकृति दोनों का शोषण उद्योगपति द्वारा चल रहा है । 
  • राजनीति ;- समाज हित में सोचने वाले न्यूनतम और समाज की कमजोरी के आधार पर लूटने वाले अधिकतम राजनेता खडे हो रहे हैं । अधिकतम नेता की यही चाहत है कि समाज द्वारा अर्जित धन बांटने के लिए जब वे खडे हों तो  भीखारी जैसे जनता उनके सामने खडे होकर सभा की भीड बढाते रहें । चाहे वे नेता भ्रष्टाचार मे आकंठ डूबे रहें । दूसरी बात अपनी सुविधा बढाने मे जनता की गाढी कमाई से उनको कोई मोह नही ।
  • समाचार सम्प्रेषण ( पत्रकारिता ) ;- समाचार जगत मे बडे पुंजीपति का प्रवेश होने और विज्ञापन प्राप्त करने के लिये कारोबारी, उद्योगपति, कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, फिल्म जगत, शिक्षा जगत, चिकित्सा जगत की खामियों की जानकारी रखने मे ध्यान, जिसके बलबूते विज्ञापन की राशि वसूली जा सके । सांस्कृतिक आक्रमण करने से विदेशी आशीर्वाद मिलने की सम्भावना ।
  • बुद्धिजीवी ;- स्वाध्याय न प्रमद; की सोच रखने वाले भारत के बुद्धिजीवी आज विदेशी इशारे पर इस देश की सांस्कृतिक धरोहर ( सत्य, अहिंसा, त्याग, दान, सेवा, परोपकार आदि ) को छोडकर पाश्चात्यकरण में अपनी कलम चला रहे हैं और उसके माध्यम से धन अर्जित कर रहें हैं ।
  • फिल्म जगत :-  आज कम से कम कपडे में नायिका को प्रस्तुत करना यह प्रचलन बढ रहा है नशा करते हुए दृश्य बनाना यह सब निर्माताओं द्वारा इसलिये चल रहा है क्योंकि जनता इस बात पर अधिक खर्च करने मे रुचि लेती है ।
    खिलाडी :- सरकारी बजट का ज्यादा हिस्सा जिस खेल मे व्यय होता है उसी खेल के प्रति जनता का आकर्षण बढता है आज विदेशों मे विकसित खेल को ही अपने देश मे प्रचलित करने का विशेष आग्रह राजनितिकों द्वारा रखा जा रहा है जिसमें प्रतियोगिता पुर्ण दृष्टिकोण होने के कारण प्रत्येक खिलाडी का महत्वाकांक्षी होना स्वाभाविक है ।
    शिक्षा :- आज व्यवसायिक शिक्षा के प्रति समाज का रुझान बढा है जिसको देखते हुए शिक्षाविद अब दुकानदारी मे उतर गए हैं । तकनीकि शिक्षा में भारी भरकम खर्च को तैयार अभिभावकों की जेब खाली करवाने में तकनीकि संस्थान होड मचाये हुए हैं ।
    स्वास्थ्य :- जन समुदाय ने आज अपनी दिनचर्या को इस प्रकार बिगाड लिया है कि उनकी बिमारी दिनोंदिन बढ रही है । सभी चाहते हैं कि जल्द से जल्द स्वास्थ्य को तात्कालिक लाभ पहुंचाकर अपनी दिनचर्या मे वापस लौट सकें । इस कारण वे चिकित्सा से अधिकतम शोषित हो रहे हैं । जन-जीवन मे लोग शारीरिकसे दूर हो रहे हैं जो चिकित्सकों के लिए एक मौका हो गया है वे लाभ ले रहें हैं ।
    कारोबारी :- प्रत्येक व्यवसायी चाहते हैं कि बाज़ार में उत्पादन पर उनका एकाधिकार रहे आज नेटवर्क व्यवसाय और मॉल मे सदस्य ग्राहक बनाकर लुभावनी व्यवस्था बनाई जा रही है अन्य क्षेत्रों में भी इसी प्रकार एकाधिकार का प्रयास चल रहा है जिसके कारण पुंजी का केंद्रीकरण हो रहा है ।
    धार्मिक आस्था  केंद्र :- पुरी दुनिया में फैले भारतीय, विभिन्न मठ-मंदिरों में अपनी मन्नत पुरी होने पर चढावा चढाते हैं वैसे अधिकतम केंद्रों पर चुंकी सरकारी हस्तक्षेप हो रहा है जिसके चलते वहां राजनीति को बढावा मिला है । पुर्व में विकसित जन्माधारित पुजकों की व्यवस्था में भी आपसी संघर्ष होने के चलते वर्तमान व्यवस्था विकसित हुई है ।
    रक्षक ही भक्षक :- स्वास्थ्य रक्षा में लगे चिकित्सक, देश के आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा  में लगे सुरक्षाकर्मी एवं न्यायालय में बैठे न्यायाधीश भी इस दायरे में आ रहे हैं । नैतिकता में गिरावट ही इस परिस्थिति का मूल कारण है ।
    उपरोक्त को प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष मदद पहुंचाकर भी लोग धन अर्जित कर रहें हैं ।
    (ख) धनाढ्य वर्ग के व्यय के तरीके:-
    1. नई पीढी के व्यवसायिक शिक्षा पर व्यय
    2. आलीशान मकान पर व्यय
    3. आडम्बरयुक्त विवाह पर व्यय
    4. पर्यटन पर व्यय
    5. स्वास्थ्य रक्षण पर व्यय
    6. दिखावा – वस्त्र, आभूषण, वाहन, साज सज्जा, इलेक्ट्रीक, इलेक्ट्रोनिक
    7. धार्मिक आस्था केंद्रो पर व्यय
    8. सेवा प्रकल्प पर व्यय
    9. नशा में व्यय
    10. व्यभिचार में व्यय
    11. भोजन पर व्यय
    12. माफिया/गुंडा तत्व के पोषण पर व्यय
    13. आपसी संघर्ष के निपटारे पर व्यय
    14. सरकारी कर
    15. राजनेता पर व्यय
    16. मनोरंजन पर व्यय
    वैसे तो मनुष्य जीवन के लिए अति आवश्यक रोटी, कपडा, मकान, संस्कारयुक्त शिक्षा, स्वास्थ्य है । लेकिन धनाढ्य वर्ग ने अपनी अतिरिक्त आय के व्यय हेतु विभिन्न रास्ते बना लिए हैं ।
    ·        नई पीढी के व्यवसायिक शिक्षा पर व्यय :- आज प्रत्येक अभिभावक अपनी संतान को व्यवसायिक शिक्षा दिलवाने पर अपनी आय का एक बडा हिस्सा खर्च कर रहे हैं । अभिभावक की चाहत है कि मेरी संतान आय के किसी भी प्रकार के स्रोत खडे करे ।
    ·         आलीशान मकान पर व्यय :- मकान का आकार कितना बडा है यह आज समाज में प्रतिष्ठा का विषय बन गया है चाहे उस मकान की परिजनों को रहने के लिए आवश्यकता हो या नही । चाहे उसके रख-रखाव के लिए अधिक खर्च करना पडे ।
    ·         आडम्बरयुक्त विवाह पर व्यय :- विवाह के प्रीति भोज पर कितने लोगोंको अतिथि नाते बुलाया और कितना खर्च किया यही प्रतिष्ठा का विषय हो गया है । विवाह पर होने वाली फूलों की सज्जा, विद्युत उपकरण की सजावट, रंगमंचीय नृत्य, गाजा-बाजा, दहेज इन बातों पर होने वाले व्ययके कारण तो कभी-कभी धनी व्यक्ति भी चिंता की मुद्रा में आ जाता है किंतु लोक-लज्जा के चलते यह सब आवश्यक समझता है ।
    ·         पर्यटन पर व्यय :- आज देश के यातायात साधनों में लगातार वृद्धि हो रही है । यात्रा हेतु विमानों की, रेलगाडियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है । घुमने से बुद्धि का विकास होता है लेकिन इसका कोई अंत भी नही है । पर्यटन में दिखावे पर व्यय अधिक हो रहा है ।
    ·        स्वास्थ्य रक्षण पर व्यय :- चिकित्सकों में प्रामाणिकता की कमी के कारण अधिक खर्च करके धनी व्यक्ति अपने आपको स्वास्थ्य रक्षण में संतुष्ट पाता है ।
    ·        दिखावा :- वस्त्र, आभूषण, साज-सज्जा, घरलु उपकरण, बिजली उपकरण, इलेक्ट्रोनिक उपकरण, एवं वाहन इन सभी में अपने आर्थिक स्तर से व्यक्ति दिखावे में खर्च कर रहा है जो अनेक प्रकार की नई परेशानी भी खडी कर रहें हैं।
    ·        धार्मिक आस्था केंद्रों पर व्यय :- चढावा, मंदिर निर्माण, धर्मशाला निर्माण, आदि केंद्रों के विस्तार में समाज खर्च कर रहा है । मेरा ख्याल है मंदिरों की रचना उतनी ही करनी चाहिए जितने की स्वच्क्ष्ता एवं पूजन व्यव्स्था जीवन भर निभाई जा सके न कि किसी जमीन पर कब्जे के उद्देश्य से यह प्रक्रिया हो फिर भी कुछ निर्माण कार्य समाज हित में हो रहे हैं।
    ·        सेवा प्रकल्प पर व्यय :- कुछ धनी जन सेवा पर अपनी आय का कुछ हिस्सा व्यय कर रहे हैं यह अच्छी बात है । सेवा की आड में अपनी महत्वाकांक्षा को छुपाकर रखने वाले भी कुछ लोग हैं उनका दृष्टिकोण बदले यह आज के समय की मांग है ।
    ·        नशा :- आज शिक्षित समाज भी नशा में आगे है इसके कारण स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड रहा है । फिर भी नशा आज आम जनता में फैला है उसमे धनाढ्य भी पीछे नही हैं ।
    ·         व्यभिचार पर व्यय :- कामुकता एवं अन्य बातोंपर धनाढ्य वर्ग व्यय कर रहा है समाज को आचरण का पाठ पढाने वाले भी इसके नजदीक जा रहे हैं । जिससे लोग भ्रमित हो रहे हैं ।
    ·         भोजन पर व्यय :- सामान्य भोजन तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है किंतु स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले व्यंजन आज प्रचलित हो गए हैं जिसपर समाज का दोतरफा व्यय बढा है ।
    ·        माफिया / गुंडा तत्व के पोषण पर व्यय :- कुछ धनपतियों के द्वारा अपने स्वार्थ के लिए पोषित माफिया / गुंडा तत्व बाद में अपना नेटवर्क बनाकर समाज के लिए परेशानी पैदा कर रहें हैं । इस प्रकार की गतिविधि में आज भी समाज का काफी धन व्यय हो रहा है ।
    ·         आपसी संघर्ष के निपटारे पर व्यय :- न्याय व्यवस्था की वर्तमान प्रणाली में धनी व्यक्ति अपनी बात मनवाने में धन का दुरुपयोग कर न्याय पर प्रभाव डालता है जिससे गरीब की समस्या बढ रही है ।
    ·        सरकारी कर :- धनाढ्य वर्ग अपनी आय का एक हिस्सा सरकार को कर के रूप में अदा करते हैं बाद में उनकी अपेक्षा रहती है कि इस धन के व्यय में भी उनकी इच्छा जानी जाए ।
    ·        राजनेता पर व्यय :- अपनी पहचान बढाने के लिए धनी लोगों के एक वर्ग द्वारा राजनेता को भी खुश करने का प्रयास चलता है जिससे सत्ता में आने पर उनसे अपने स्वार्थ अनुसार नीति निर्धारण करवाई जा सके ।
    ·        मनोरंजन पर व्यय :- मनोरंजन पर व्यय करने से अपना मन प्रसन्न रहता है परंतु मनोरंजन को फूहडता से जोडना यह धनी वर्ग द्वारा तेजी से हो रहा है ।

    समाज में अमीर-गरीब का होना स्वाभाविक है सभी उंगलियां कभी समान नही हो सकती किंतु यह अनुपात बढ रहा है जो चिंता का कारण है । काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर मनुष्य के छ: शत्रु हैं इनके बढने से सामाजिक असंतुलन बढेगा और इनके न रहने से समाज नहीं चल सकता । उपरोक्त धनी वर्ग के आय-व्यय के स्रोत से ध्यान में आता है कि उनके स्वास्थ्य में गिरावट, उनपर असामाजिक तत्व का दबाव, उनपर राजनेता का दबाव लगातार बढ रहा है । उनके घर का कलह भी बढ रहा है चुंकि संतोष की भावना का लोप होते हुए भोग वादी जीवन की कामना बढ रही है । इन सब बातों को लिखने का मेरा मकसद यह नही कि समस्या ही बताई जाए मै चाहता हुं समाधान की दिशा में चिंतन एवं व्यवहार में भी सकारात्मक योगदान करें ।

    दूसरे के दु:ख को देखकर जो खुश हो                          - नर राक्षस
    दूसरे के दु:ख को देखकर जो न दु:खी हो, न खुश हो             - नर पशु
    दूसरे के दु:ख को देखकर जो दु:खी तो हो लेकिन करे कुछ नहीं     - नर
    और दूसरे के दु:ख को देखकर सेवा के लिए खडे हो जाए          - नरोत्तम

    इस प्रकार चार प्रकार के लोग दुनिया में हैं प्रत्येक व्यक्ति उत्तरोत्तर नरोत्तम बनने की और अग्रसर हो यह आज के समय की मांग है । जिससे विश्व बंधुत्व स्थापित हो सके ।

    लक्ष्मण भावसिंहका
    धनबाद
    फाल्गुन  शुक्ल पंचमी
    युगाब्द- 5109


Wednesday, July 30, 2014

इस्लाम और चर्च की गतिविधि संचालकों से भी हम सीख सखते हैं संगठन सूत्र

इस्लाम और चर्च की गतिविधि संचालकों से भी हम सीख सखते हैं संगठन सूत्र 

इस्लाम के प्रवर्तक और चर्च की गतिविधि संचालित करने वाले संगठन 4 काम को समान रूप से संगठन हेतु अपनाते हुए दिखाई देते हैं ;- 

1- संगठन के लिये नियमित मिलना (साप्ताहिक)
2- मिलने के बाद सामुहिक कार्यक्रम ( नमाज/प्रार्थना )
3- सामुहिक मिलन की गतिविधि का वैश्विक स्तर पर नेटवर्क, तथा
4- मिलन का कार्यक्रम नागरिकों के अपने मुहल्ले मे ही । 

जबकी हिंदू समाज के संगठन का इस प्रकार से कोई  सांगठनिक व्यवस्था वर्तमान मे दिखाई नही देती है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संघ की शाखा पर संगठन की ये चारों व्यस्थायें दी हैं । परंतु ये विडम्बना हि है की हिंदू समाज आज भी नियमित मिलने-जुलने की गतिविधि को बढा नही पा रहा है और अगर पूर्व  से हिंदुओं की मिलने- जुलने की गतिविधि पर विचार किया जाये तो ध्यान मे आता है कि बडे-बडे सम्मेलनों मे, मेले मे या भक्ति के आयोजनों मे मिलने से उपरोक्त चारो कार्यों की पुर्ति नही हो पाती  । संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी कहते थे प्रश्न तीन है और उत्तर एक-- रोटी जली क्यों, पान सडा क्यों और घोडा अडा क्यों ? इन तीनों प्रश्नों का एक ही उत्तर है 'फेरा नही गया' उसी प्रकार अपने हिंदू समाज को भी फेरा नही गया जिसके चलते हिंदू जनमानस आपसी मतभेदों मे उलझ गया । 

यह सर्वविदित है की सामाजिक प्रीति के 6 लक्षण हैं-- आना, जाना, खाना, खिलाना, दुसरे के रहस्य की बातों को सुनना और अपने रहस्य की बातों को दुसरों को बताना । अपने देश मे चलने वाले अधिकतम जातिगत संगठनों ने आने, जाने, खाने, खिलाने पर प्रतिबंध लगाकर ही सामाजिक खाई को बढावा दिया है और व्यक्ति अपने, अपने परिवार, अपने रिश्ते-नाते, अपनी जाति तक की सोच मे अटक गया और अपने इस वृहद हिंदू समाज के प्रीति को भूलने लगा जिसका दुस्परिणाम आज की बिखराव की स्थिति के रूप मे सामने आया है । 
संघ ने जो संगठन का सूत्र हिंदू समाज के सामने रखा है उसे जल्द से जल्द अपनाकर हि वैश्विक परिस्थितियों से इस देश को बचाया जा सकता है और भारत फिर से विश्व गुरू के शिखर पर पहुंच सकता है । 

Monday, July 21, 2014

शिक्षा राष्ट्रीय प्राणधारा के साथ जुड़े

शिक्षा राष्ट्रीय प्राणधारा के साथ जुड़े

यह आवश्यक है कि देश की शिक्षा पद्धति व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का साधन बनेराष्ट्रीय स्वाभिमान और सामाजिक प्रतिबद्धता का भाव उत्पन्न करे तथा राष्ट्रीय विकास की आवश्यकता पूरी करे। परन्तु देखने में आता है कि हमारी शिक्षा इन उद्देश्यों को पूरा करने में बहुत हद तक असफल रही है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वातंत्र्यप्राप्ति के बाद देश की शिक्षा पद्धति में आमूलाग्र परिवर्तन लाते हुए उसे स्वतंत्र राष्ट्र के आदर्शोंआकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने का प्रयास नहीं हुआ। कुछ आयोग तथा समितियाँ बिठाई गईं और उनकी महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ भी प्रस्तुत हुईंपरन्तु राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में उनको लागू करने के प्रामाणिक प्रयत्न नहीं हुए। कोठारी आयोग ने खेद प्रकट किया था कि हमारे विद्यालय और महाविद्यालय राष्ट्र पुनर्निर्माण के महान् लक्ष्य से अछूते रह गए हैं। उनका प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के बाद भी परिस्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ।
शिक्षा क्षेत्र में वर्तमान में दिख रही गिरावट अब तक अपनाई गई दिशाहीन नीतियों का परिणाम है। कई समितियों और आयोगों की सिफारिशों के बावजूद नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित चरित्र निर्माण की शिक्षा की सम्पूर्ण उपेक्षा की गई।
राष्ट्रीय सांस्कृतिक परम्परा के बारे में स्वाभिमान व गौरव निर्माण करने के स्थान पर उनका अपमान और अवहेलना करने वाले पाठयक्रम अपनाए गए- जैसे NCERT की पाठयपुस्तकों कोजिनमें देश की आराध्य विभूतियों एवं विभिन्न समुदायों के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की गई थीमनमोहन सरकार की ओर से पुन: पाठयक्रमों में शामिल किया जाना और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में पढ़ाई जा रही पुस्तकों में हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति अश्लील और अपमानजनक उल्लेख करनादिल्ली विश्वविद्यालय की पाठयपुस्तकों में भगवान श्रीरामहनुमानलक्ष्मण आदि आदर्श के प्रतिरूप चरित्रों को विकृत रूप में प्रस्तुत करना आदि।       राष्ट्रीय मानबिन्दुओं के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न करने वाली इन दुश्चेष्टाओं और उनके पीछे काम कर रही धूर्त मनोवृत्ति की निंदा की जानी चाहिये । यह संतोष की बात है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने NCERT की पुस्तकों से आपत्तिजनक सभी 75 टिप्पणियों को निकालने का आदेश दिया । इन सभी विषयों के संदर्भ में न्यायालयीन लड़ाई और व्यापक जनमत जागरणदोनों के सहारे सरकार को अपने कुछ कदम पीछे हटाने के लिए बाध्य करने में 'शिक्षा बचाओ आंदोलनकी भूमिका भी सराहनीय रही।
शिक्षा के द्वारा जहाँ चरित्र निर्माण तथा शरीर और मन पर संयम साधने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए वहाँ पुर्ववर्ती केन्द्र सरकार एड्स नियंत्रण का बहाना लेकर मासूम बालक-बालिकाओं को यौन शिक्षा देने की ओर प्रवृत्त रही। व्यापक जनविरोधविशेषकर संतों द्वारा इसके विरोध में आवाज उठाने के परिणामस्वरूप कई राज्य सरकारों द्वारा इसे लागू न करने का निर्णय स्वागत योग्य रहा । लेकिन खेद इस बात का है कि इसके बावजूद केन्द्र सरकार अपने निर्णय पर अड़ी रही ।
पिछले डेढ़ दशक में भूमंडलीकरण के फलस्वरूप शिक्षा के व्यापारीकरण-बाजारीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है। विदेशी शिक्षा संस्थान तेजी से अपने पाँव पसारने लगे हैं। यद्यपि अपने देश में ज्ञान के आदान-प्रदान पर कोई रोक-टोक कभी नहीं रहीतथापि वर्तमान में जिस प्रकार मात्र व्यावसायिक दृष्टिकोण से 'विदेशी शैक्षिक सेवा संस्थानव्यापक पैमाने पर देश में आ रहे हैं वह गंभीर चिंता का विषय है।  इस बात की सावधानी बरती जानी चाहिए कि उनके प्रवेश से अपने राष्ट्रीय हितों को कोई क्षति न पहुँचे।
देश के अन्दर प्रचलित निजीकरण की प्रक्रिया का लाभ उठाकर शिक्षा को भी नफाखोरी का एक माध्यम बनाया जा रहा है। शिक्षा इतनी महँगी हो रही है कि दुर्बल आर्थिक वर्गों के छात्र शिक्षा से वंचित हो जाने का और सामाजिक विषमता की खाई के बढ़ जाने का खतरा दिखाई दे रहा है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की अधिक संख्या भी चिंता का विषय है। इनमें से अधिकतर बच्चे पिछड़े वर्ग के होने के कारण शिक्षा के माध्यम से सर्वसमावेशक एवं समरसतापूर्ण समाज निर्माण करने का उद्देश्य दूर ही रह जाता है। शिक्षा क्षेत्र में बढ़ते हुए थोथे अल्पसंख्यकवाद पर भी ध्यान देना होगा । अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पचास प्रतिशत मुस्लिम आरक्षणअल्पसंख्यक शैक्षिक आयोग का गठनअल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाओं के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान करनालोकसेवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बजट में मुसलमानों के लिए विशेष प्रावधान, 2008-09 के बजट में मुस्लिम छात्रों के लिए मैट्रिक-पूर्व छात्रवृत्ति इत्यादि उपक्रमों के द्वारा सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में भी सम्प्रदाय के आधार पर विभाजक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का प्रयास किया ।
एक स्वतंत्र स्वाभिमान सम्पन्न राष्ट्र की प्रथम आवश्यकता है कि वहाँ की शिक्षा अपने देश की भाषाओं में दी जाये। लेकिन अपने देश में आजादी के 67 साल के बाद भी शिक्षा में अँग्रेजी का शिकंजा बरकरार ही नहींअपितु दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। मनमोहन सरकार द्वारा गठित 'राष्ट्रीय ज्ञान आयोगने भी अपनी अनुशंसाओं में अँग्रेजी भाषा को अत्यधिक महत्त्व दिया। यह स्वप्नरंजन मात्र है कि सबको अँग्रेजी पढ़ाने से ही एक ज्ञान-आधारित समाज का निर्माण हो जाएगा।

शिक्षा क्षेत्र मे ध्यान देने योग्य बातें :- 

1- 
शिक्षा का उद्देश्य केवल जीविकोपार्जन क्षमता उत्पन्न करना न होकर देशभक्ति,सेवाभावना व सामाजिक उत्तरदायित्व का भाव उत्पन्न करना होना चाहिए।
2- बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की संख्या कम करने के लिए परिणामकारी कदम उठाए जाएँ।
3- 
शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा ही होना चाहिए। साथ में राष्ट्रीय संपर्क भाषा हिंदी का उत्तमज्ञान दिया जाना चाहिए। किसी एक विदेशी भाषा के रूप में अँग्रेजीफ्रेंचजर्मन,रूसीजापानीचीनी आदि का सामान्य व्यवहार लायक ज्ञान कराया जाये।
4- सरकार की विभिन्न व्यवस्थाओं में अँग्रेजी को दिया गया अनुचित महत्त्व समाप्त किया जाना चाहिए।
5- बच्चों के लिए चरित्र निर्माण करने वाली शिक्षा की आवश्यकता हैन कि यौन शिक्षा की।
6- सरकार शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने के लिए कारगर कदम उठाए।
7- शिक्षा क्षेत्र में पंथाधारित अल्पसंख्यकवादी भेद की नीति को सरकार अविलम्ब त्यागे।
8- शिक्षा पद्धति में राष्ट्रीय भाषाओं कोविशेषकर संस्कृत भाषा कोजो अमूल्य ज्ञान का भंडार हैउचित महत्त्व और प्राथमिकता दी जाये।
राष्ट्रीय विकास में शिक्षा का अहम महत्त्व ध्यान में रखते हुए इसे परिवर्तनशील राजनीतिक स्थितियों तथा नौकरशाही के नियंत्रण से मुक्त रखना आवश्यक है।  यह आवश्यक है कि शिक्षा के बारे में समग्र विचार तथा शैक्षिक नीतियों के क्रियान्वयन की निगरानी करने हेतु एक स्वतंत्र व स्वायत्त शिक्षा आयोग का गठन किया जाये।
देश के शिक्षाविदशिक्षकनीति निर्मातासभी राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार इस दिशा मे ध्यान केंद्रित करें कि शिक्षा व्यवस्था निर्माण करने की दिशा में ऐसे कदम उठाएँ जाये जिससे आत्मविश्वास तथा राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना से ओतप्रोत नई पीढ़ी का निर्माण होजो हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता प्राप्त करते हुये राष्ट्र को सर्वांगीण विकास के सर्वोच्च शिखर पर ले जाए।